जन शून्य गांवों के बंजर रयासतें

किसी भूतिया इलाके से कम नहीं दिखता यह गांव
अल्मोड़ा। उत्तराखंड के पर्वतीय भू-भागों से निरंतर हो रहा पलायन राजनैतिक दलों व बारी-बारी से सत्ता में काबिज होने वाले भाजपा-कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय दलों की उदासीनता के चलते महज एक राजनैतिक मुद्दा बनकर रह गया है। जिसकी बानगी ताड़ीखेत ब्लाक के खूंटधामस क्षेत्र के निकटवर्ती रूमा गांव में देखने में आई है, जहां पूरा का पूरा गांव ही खाली हो चुका है।
यह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट व विधायक व उप नेताप्रतिपक्ष करन महरा के विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। ज्ञात रहे कि पलायन रोकने को प्रदेश में पलायन आयोग का भी गठन कर दिया गया है, लेकीन इसके कोई सार्थक परिणाम आज की तारीख में दिखाई नहीं दे रहे हैं। उल्लेखनीय है कि रूमा गांव सड़क मार्ग लगभग सात किमी की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए तीन किमी की खड़ी चढ़ाई चढऩी पड़ती है। 40 साल पहले यहां करीब 80 परिवार रहते थे, लेकिन बिजली, पानी, स्वास्थय, शिक्षा व सड़क जेसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में यहां के वाशिंदे गांव से एक-एक करके पलायन करते रहे और देखते ही देखते पूरा का पूरा गांव खाली हो गया। अंतिम परिवार भी लगभग सात साल पहले गांव छोड़कर जा चुका है। अब यहां केवल पुराने खंडहरनुमा मकान ही शेश हैं। निकटवर्ती गांवों के लोगों का कहना है कि यह गांव तो अब किसी भूतिया इलाके से कम नहीं दिखाई देता है। यहां खाली पड़े मकानों में तेंदुए जैसे वन्य जीवों ने अपना बसेरा बना लिया है। हर तरफ कुरी की विशाल झाडिय़ां उगी हुई हैं। रात तो दूर दिन में भी यहां आने से लोग डरते हैं। इलाके के लोगों का कहना है कि कोई भी अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदात सामान्य परिस्थितियों में छोड़कर नहीं जाता है। यदि यह गांव खाली हुआ है और यहां रहने वाले लोग अपनी चल-अचल संपत्ति यूं ही छोड़कर चल दिये तो निश्चित रूप से इसके पीछे एक बड़ी दर्द भरी दास्तान रही होगी, किंतु संवेदनहीन सरकारों के लिए तो जैसे यह कोई मुद्दा ही नहीं है।
प्रचार माध्यमों से संकलित
साभार उत्तरांचलदीप

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