देर से ही सही जागरुक हो रहा है पहाड़
चैत्राष्टमी मेला देघाट मे
पहली बार नही की गई बकरे की बलि
अल्मोड़ा- देघाट में सैकडो वर्षो से आयोजित होता आ रहा चैत्राष्टमी मेले मे
प्रतिवर्ष सप्तमी की रात्री मे बकरो की बलि से कालरात्रि की पूजा होती थी
तथा अष्टमी के दिन मे भैंसो की बलि की प्रथा रही
लेकिन कुछ वर्षों से भैसों की बलि तो नही हो रही थी लेकिन बकरे की बलि पूर्णतया बन्द नही हो पा रही थी
इस वर्ष प्रशासन की मुस्तैदी से पहली बार बकरो की बलि नही हो सकी
जबकी एक दर्जन बकरे बलि हेतु लोगों द्वारा लाए गए थे लेकिन प्रशासन द्वारा लोगो को समझा बुझा कर बलि नही देने हेतु तैयार करने मे बडी जद्दोजहद करनी पर
मन्दिर परिसर मे इस को लेकर काफी देर तक जद्दोजहद की स्थित बनी रही
उपजिलाधिकारी गौरव चटवाल व थाना प्रभारी धर्मबीर सोलंकी बडी मात्रा मे पुलिस बल के साथ पूरी रात मन्दिर परिसर मे डटे रहे
जिसमे मन्दिर समिति ने पूरा योगदान दिया
चैत्राष्टमी मेला देघाट मे
पहली बार नही की गई बकरे की बलि
अल्मोड़ा- देघाट में सैकडो वर्षो से आयोजित होता आ रहा चैत्राष्टमी मेले मे
प्रतिवर्ष सप्तमी की रात्री मे बकरो की बलि से कालरात्रि की पूजा होती थी
तथा अष्टमी के दिन मे भैंसो की बलि की प्रथा रही
लेकिन कुछ वर्षों से भैसों की बलि तो नही हो रही थी लेकिन बकरे की बलि पूर्णतया बन्द नही हो पा रही थी
इस वर्ष प्रशासन की मुस्तैदी से पहली बार बकरो की बलि नही हो सकी
जबकी एक दर्जन बकरे बलि हेतु लोगों द्वारा लाए गए थे लेकिन प्रशासन द्वारा लोगो को समझा बुझा कर बलि नही देने हेतु तैयार करने मे बडी जद्दोजहद करनी पर
मन्दिर परिसर मे इस को लेकर काफी देर तक जद्दोजहद की स्थित बनी रही
उपजिलाधिकारी गौरव चटवाल व थाना प्रभारी धर्मबीर सोलंकी बडी मात्रा मे पुलिस बल के साथ पूरी रात मन्दिर परिसर मे डटे रहे
जिसमे मन्दिर समिति ने पूरा योगदान दिया
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